Friday, August 7, 2015

The country cannot be happy, if the worker is unhappy. As a society, we need to respect the Dignity of Labour: PM

यह जो हमारी सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी कमी आई है सदियों के कारण आई हुई है। लेकिन कभी न कभी dignity of labour , श्रम की प्रतिष्‍ठा, श्रमिक का सम्‍मान ये समाज के नाते अगर हम स्‍वभाव नहीं बनाएंगे तो हम हमारे श्रमिकों के प्रति जो कि उसके बिना हमारी जिन्‍दगी नहीं है, अगर कोई धोबी बढ़िया सा iron नहीं करता तो मैं कुर्ता पहनकर कहां से आता यहां और इसलिए जिनके भरोसे हमारी जिन्‍दगी है उनके प्रति सम्‍मान का भाव यह सामाजिक चरित्र कैसे पैदा हो, उसके लिए हम किस प्रकार से व्‍यवस्‍थाओं को विकसित करे। हमारे बच्‍चों की पाठ्य पुस्‍तकों में उस प्रकार के syllabus कैसे आए ताकि सहज रूप से आनी वाली पीढ़ियां हमारे श्रमिक के प्रति सम्‍मान के भाव से देखने लगे। आप देखिए माहौल अपने आप बदलना शुरू हो जाएगा। हमारी सरकार को सेवा करने का अवसर मिला है, श्रम संगठनों के साथ लगातार बातचीत चल रही है और त्रिपक्षीय बातचीत के आधार पर ही आगे बढ़ रहे हैं। कई पुरानी-पुरानी गुत्‍थियां हैं, सुलझानी है और मुझे विश्‍वास है कि देश के श्रमिकों के आशीर्वाद से इन गुत्‍थियों को सुलझाने में हम सफल होंगे और समस्‍याओं का समाधान करने में हम कोई न कोई रास्‍ते खोजते चलेंगे। और सहमति से कानूनों का भी परिवर्तन करना होगा। कानूनों में कोई कुछ जोड़ना होगा, कुछ निकालना होगा वो भी सहमति से करने का प्रयास, प्रयास करते ही रहना चाहिए और निरंतर प्रक्रिया चलती रही है, आगे भी चलती रहने वाली है। कोई भी सरकार आए, ये कोई आखिरी कार्यक्रम कभी होता नहीं है और इसलिए मैं समझता हूं कि इस प्रक्रिया का अपना महत्‍व है। मेरा विश्‍वास रहा है- ‘minimum government , maximum governance’ और इसलिए ये जो कानूनों के ढेर हैं कानूनों का ऐसा कहीं खो जाए इन्‍सान। पता नहीं इतने कानून बनाये कर रखे हुए और हरेक को अपने फायदे वाला कानून ढूंढ सकते हैं ऐसी स्थिति है। हर कोई उद्योगकार एक ही कानून में से उद्योगकार को अपने मतलब का कानून निकलाना है तो वो भी निकाल सकता है सामाजिक संगठन को निकालना है तो वो भी निकाल सकता है, सरकार को निकालना है तो वो भी निकाल सकती है। क्‍योंकि टुकड़ों में सब चीजें चलती रही हैं | जब तक हम एक एकत्रित भाव से, composite भाव से, हमें जाना कहां है उसको ले करके , और इसीलिए मैंने एक कमेटी भी बनाई है के इन सबमें जो पुराने कानूनों को जरा देखरेख में सही कैसे किया जाए। और सच्‍चे अर्थ में जिनके लिए बनाए गए हैं कानून उनको लाभ हो रहा है या नहीं हो रहा। वरना कोई और जगह पर ऐसा कानून बनके बैठा हुआ है जो इसको आगे ही नहीं जाने देता। अब श्रमिक कहां लड़ेगा, कहां जाएगा। वो क्‍या कोर्ट कचहरी में इतने महंगे वकील रखेगा क्‍या। और इसलिए मेरा यहा आग्रह है और मैं ये कोशिश कर रहा हूं कि ये कानूनों का एक बहुत बड़ा जाल हो गया है उसका सरलीकरण हो, गरीब से गरीब व्‍यक्ति भी अपने हकों को भली भांति समझ पाएं, हकों को प्राप्‍त कर पाएं। ऐसी व्‍यवस्‍थाओं को हमने विकसित करने की दिशा में हमारा प्रयास है और मेरा विश्‍वास है कि हम उसको कर पाएंगे। मैं कभी-कभी उद्योग जगत के मित्रों से भी कहना चाहता हूं और मैं चाहूंगा कभी हमारे इस Forum में एक और पहलू पर भी हम सोच सकते हैं क्‍या, क्‍योंकि हमने अपने एजेंडे को बड़ा सीमित कर दिया है। और जब तक उसका दायरा नहीं बढ़ाऐंगे पूरे माहौल में बदलाव नहीं आएगा। कितने उद्योगार हैं जिन्‍होंने अपने उद्योग चलाते-चलाते ऐसा माहौल बनाया, ऐसी व्‍यवस्‍था बनाई कि खुद का ही काम करने वाला एक मजदूर आगे चल करके Entrepreneur बना। कभी ये ऐसे ही तो खोज के निकालना चाहिए क्‍या उद्योगकार का यही काम है क्‍या। क्‍या 18-20 साल की उम्र में उसके यहां आया वो 60 साल का होने के बाद किसी काम का न रहे तब तक उसी के यहां फंसा पड़ा रहे। क्‍या ऐसा माहौल कभी उसने बताया कि हां मेरे यहां मजदूर के यहां पे आया था लेकिन मैंने देखा भई उसमें बहुत बड़ी क्षमता है, टेलैंट है, थोड़ा मैं उसको सहारा दे दूं वो अपने-आप में एक Entrepreneur बन सकता है और मैं ही एक-आध पुर्जा बनाएगा तो मैं खुद खरीद लूंगा जो मेरी फैक्‍टरी के लिए जरूरी है तो एक अच्‍छा Entrepreneur तैयार हो जाएगा।

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