Sunday, August 2, 2015

Text of PM's remarks at launch of Speaker's Research Initiative – Inauguration of Workshop on Sustainable Development Goals

सभी वरिष्ठ महानुभाव 

मैं ह्रदय से ताई जी का अभिनन्‍दन करता हूँ कि आपने SRI की शुरूआत की हैं, वैसे अब पहले जैसा वक्‍त नहीं रहा है कि जब सांसद को किसी विषय पर बोलना हो तो ढेर सारी चीजें ढूंढनी पड़े, इकट्ठी करनी पड़े वो स्थिति नहीं रही है technology ने इतना बड़ा role play किया है और अगर आप भी Google गुरू के विद्यार्थी हो जाएं तो मिनटों के अंदर आपको जिन विषयों की जानकारी चाहिए, मिल जाती है। लेकिन जब जानकारियों का भरमार हो, तब कठिनाई पैदा होती है कि सूचना चुनें कौन-सी, किसे उठाएंगे हर चीज उपयोगी लगती है लेकिन कब करें, कैसे करें, priority कैसे करेंगे और इसिलए सिर्फ जानकारियों के द्वारा हम संसद में गरिमामय योगदान दे पाएंगे इसकी गारंटी नहीं है। जब तक कि हमें उसके reference मालूम न हों, कोई विषय अचानक नहीं आते हैं लम्‍बे अर्सें से ये विषय चलते रहते हैं। राष्‍ट्र की अपनी एक सोच बन जाती है उन विषयों पर दलों की अपनी सोच बनती है। और वो परम्‍पराओं का एक बहुत बड़ा इतिहास होता है। इन सब में से तब जा करके हम अमृत पा सकते हैं जबकि इसी विषय के लिए dedicated लोगों के साथ बैठें, विचार-विमर्श करें। और तब जाकर के विचार की धार निकलती है। अब जब तक विचार की धार नहीं निकलती है, तब तक हम प्रभावी योगदान नहीं दे पाते हैं। पहले का भी समय होगा कि जब सांसद के लिए सदन में वो क्‍या करते थे, शायद उनके क्षेत्र को भी दूसरे चुनाव में जाते थे तब पता चलता था। एक बार चुनाव जीत गया आ गये फिर तो । आज से 25-30 साल पहले तो किसी को लगता ही नहीं था, हां ठीक है कि वो जीत कर के गए हैं और कर रहे हैं कुछ देश के लिए। आज तो ऐसा नहीं है, वो सदन में आता है लेकिन सोचता है Friday को कैसे इलाके में वापस पहुंचु। उसके मन पर एक बहुत बड़ा pressure अपने क्षेत्र का रहता है। जो शायद 25-30 साल, 40 साल पहले नहीं था। और उस pressure को उसको handle करना होता है क्योंकि कभी-कभार वहां की समस्‍याओं का समाधान करें या न करें लेकिन वहां होना बहुत जरूरी होता है। वहां उनकी उपिस्‍थिति होना बहुत जरूरी होता है। 

दूसरी तरफ सदन में भी अपनी बात रखते समय, समय की सीमा रहती है। राजनीतिक विषयों पर बोलना हो तो यहां बैठे हुए किसी को कोई दिक्‍कत नहीं होती। उनके DNA में होता है और बहुत बढिया ढंग से हर कोई प्रस्‍तुत कर सकता है। लेकिन जब विषयों पर प्रस्‍तुतिकरण करना होता है कुछ लोग आपने देखा होगा कि जिनका development सदन की कानूनी गतिवधि से ज्‍यादा रहता है। उनका इतनी mastery होती है कुछ भी होता है तुरन्‍त उनको पता चलता है कि सदन के नियम के विरुद्ध हो रहा है। और वे बहुत quick होते हैं। हमारे दादा बैठे हैं उनको तुरन्‍त ध्‍यान में आता है कि ये नियम के बाहर हो रहा है, ये नियम के अंतर्गत ऐसा होना चाहिए। कुछ लोगों कि ऐसी विधा विकसित होती है और वो सदन को बराबर दिशा में चलाए रखने में बहुत बड़ा role play करते हैं। और मैं मानता हूं मैं इसे बुरा नहीं मानता हूं, अच्‍छा और आवश्‍यक मानता हूं। उसी प्रकार से ज्‍यादातर कितना ही बड़ा issue क्‍यों न हो लेकिन ज्‍यादातर हम हमारे दल की सोच या हमारे क्षेत्र की स्थिति उसी के संदर्भ में ही उसका आंकलन करके बात को रख पाते हैं। क्योंकि रोजमर्रा का हमारा अनुभव वही है। वो भी आवश्‍यक है पर भारत जैसे देश का आज जो स्‍थान बना है, विश्‍व जिस रूप से भारत की तरफ देखता है तब हमारी गतिविधियां हमारे निर्णय, हमारी दिशा उसको पूरा विश्‍व भी बड़ी बारीकी से देखता है। हम कैसे निर्णय कर रहे हैं कि जो वैश्विक परिवेश में इसका क्‍या impact होने वाला है। आज हम कोई भी काम अलग-थलग रह करके अकेले रह करके नहीं कर सकते हैं। वैश्विक परिवेश में ही होना है और तब जा करके हमारे लिए बहुत आवश्‍यक होगा और दुनिया इतनी dynamic है अचानक एक दिन सोने का भाव गिर जाए, अचानक एक दिन Greece के अंदर तकलीफ पैदा हो जाए तो हम ये तो नहीं कह सकते कि यार वहां हुआ होगा ठीक है ऐसा नहीं रहा है, तो हमारे यहां चिन्‍तन में, हमारे निर्णयों में भी इसका impact आता है और इसलिए ये बहुत आवश्‍यक हो गया है कि हम एक बहुत बड़े दायरे में भी अपने क्षेत्र की जो आवश्‍यकता है दोनों को जोड़ करके संसद को एक महत्‍वपूर्ण माध्‍यम बना करके अपनी चीजों को कैसे हम कार्यान्वित करा पायें। हम जो कानून बनाएं, जो नियम बनाएं, जो दिशा-निर्देश तय करवाएं उसमें ये दो margin की आवश्‍यकता रहती है और तब मैं जानता हूं कि कितना कठिन काम होता जा रहा है संसद के अंदर सांसद की बात का कितना महत्‍व बढ़ता जा रहा है इसका अंदाजा आ रहा है। 

मैं समझता हूं कि SRI का ये जो प्रयास है, ये प्रयास, ये बात हम मानकर चलें कि अगर हमें नींद नहीं आती है तो five star hotel का कमरा book कर करके जाने से नींद आएगी तो उसकी कोई गारंटी नहीं है। हमारे अपने साथ जुड़ा हुआ विषय है उसको हमने ही तैयार करना पड़ेगा। उसी प्रकार से ताई जी कितनी ही व्‍यवस्‍था क्‍यों न करें, कितने विद्वान लोगों को यहां क्‍यों न ले आए, कितने ही घंटे क्‍यों न बीतें, लेकिन जब तक हम उस मिजाज में अपने-आपको सज्ज करने के लिए अपने-आपको तैयार नहीं होंगे तो ये तो व्‍यवस्‍थाएं तो होंगी हम उससे लाभान्वित नहीं होंगे। और अगर खुले मन से हम चले जाएं अपने सारे विचार जो हैं जब उस कार्यक्रम के अंदर हिस्‍सा लें पल भर के लिए भूल जाएं कि मैं इस विषय को zero से शुरू करता हूं। तो आप देखना कि हम चीजों को नए तरीके से देखना शुरू करेंगे। लेकिन हमारे पहले से बने-बनाए विचारों का सम्‍पुट होगा। फिर कितनी ही बारिश आए साहब हम भीगेंगे नहीं कभी। raincoat पहन करके कैसे भीग पाओगे भाई। और इसलिए खुले मन से विचारों को सुनना, विचारों को जानना और उसे समझने का प्रयास करना यही विचार की धार को पनपाता है। सिर्फ information का doze मिलता रहे इससे विचारों की धार नहीं निकलती। ये भी एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। 

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