Wednesday, February 1, 2012


Modi vs the Courts
When Governments are weak the courts start becoming politically active, behaving as if the responsibility of running the country is on their shoulders. In the courts today, there are not thousands but lakhs of cases lying pending. In their quest for justice, common citizens of this country endlessly visit the courts but the court hearings are prolonged and delayed endlessly. On the other hand, in certain political cases the courts take disproportionate interest, a point that was raised by no less than the current and former Chief Justices of the Supreme Court. While respecting the verdict of the Courts, the ‘setbacks’ Gujarat Chief Minister Shri Narendra Modi is receiving at the hands of the Supreme Court raises some serious questions. Who will answer these questions? Now a new verdict has been delivered- all encounters held in Gujarat from 2003 till 2006 must be probed through an independent inquiry whose report must be submitted in within 3 months. During the period in question, there were 21 encounters and due to the doubts raised on the same the Justice Shah committee will submit its report in 3 months which is being dubbed as a ‘setback to Narendra Modi.’ These developments have made the Congress party full of happiness. Journalist BG Varghese and Javed Akhtar have also filed a petition in the Supreme Court saying all encounters are false; that human rights were violated; that they were targeted against one particular community. These claims are absolutely fictitious and false.

‘HUMAN RIGHTS VIOLATION’

What does this mean? What is this in reference to? Were the human rights of those innocent Kar Sevaks safeguarded when they were charred to death in Godhra? What followed was rioting in Gujarat causing immense blood shed. Scores of people from both communities were killed but which community needs to be blamed for this does not need to be repeated again. Since then the Congress Party has endlessly tried its best to defeat Modi in Gujarat but have failed. But when they failed at the ballot they adopted other techniques. Gujarat Congress made blatant and illegal use of Government institutions, which is a severe form on corruption. The Congress has been indulging in such tactics for years but find nothing wrong in doing so. It has been a habit of the Congress to misuse Government institutions against Opposition parties. They have always misused Article 356 for which they have also faced indictment from the courts. They cannot stay without power and that explains why they target Opposition parties. Even state Governors have not been sparred; they have become pawns in these games of the Congress. This is what is happening in Karnataka and Gujarat. The Gujarat Raj Bhavan has become a den of the dirty and corrupt politics of the Congress Party. The Lokayukta must be independent but how can he or she be appointed without consulting the Chief Minister? What is happening in Karnataka and Gujarat Raj Bhavans is nothing but politics of revenge- both states have BJP governments. The Modi government took this matter to the High Court and suffered a temporary setback.

With the latest issue of the police encounters the real intentions of the Centre are out in the open. Conflict between the Executive and the Judiciary are not healthy for a democracy. What is happening in Pakistan today must not happen in our country. We are expressing our opinions in the benefit of our nation. We need to exterminate anti-India elements. Who knows, tomorrow even the killing of anti-India elements by our soldiers would become a major controversy. Why should anti-national goons, destructionists have benefit in the name of ‘human rights?’ These elements escape the arm of the law and nobody is able to do anything about it. Ishrat Jehan from Mumbra and her associates were killed by the Gujarat police in an encounter. The testimony by David Headly on Ishrat is an eye opener she had links with LeT and other Islamic extremist groups. The same way, Sohrabuddin had links with terror groups. There may have remained some mistakes in these encounters but it is not as if the policemen killed a Pope, Saint or Maulvi. These were people who were spreading terror among the people but the policemen involved in the encounters are in jail. This has happened in Mumbai also. The police do not know who to listen to- they have to maintain law and order. If they do not do so they will be killed and so will the government functionaries. What if terrorists enter the Courts the way they entered Parliament? At present it looks as if the terrorists are being allowed to enter anyway in the pretext of ‘human rights’!
मोदी विरुध्द न्यायालय
सरकारें जब कमजोर होती है तब न्यायालय राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हो जाते हैं। देश और सरकारें चलाने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर आ पड़ी है, ऐसा मानकर बर्ताव करते हैं। न्यायालयों में हज़ारों ही नहीं बल्कि लाखों की संख्या में मुकदमे लंबित पड़े हैं। सामान्य जनता न्याय पाने के लिए न्यायालय के चक्कर काटती रहती है। उसे तारीख पर तारीख का सामना करना पड़ता है वही कुछ राजनीतिक दृष्टि से महत्त्त्वपूर्ण मुकदमों के संदर्भ में न्यायालय अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं और इस दिलचस्पी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय समेत कुछ भूतपूर्व और वर्तमान प्रमुख न्यायाधीशों ने आवाज़ उठाई है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय से जो झटके मिल रहे है, उस संबंध में हम यदि “न्यायालयीन फैसले को आदर सहित स्वीकार कर भी ले” तो भी कुछ सवाल सवाल पैदा होते हैं, उनका जवाब कौन देगा? अभी एक नया फैसला दिया गया है। सन 2003 और 2006 की अवधि में गुजरात में जो पुलिस मुडभेड हुई हैं, उनकी स्वतंत्र रूप से जाँच करवा के उसकी रिपोर्ट तीन महीनों के भीतर देने का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है। इस अवधि में 21 भिड़ंतें हुई हैं और उनके बारे में संदेह होने से न्यायाधीश शहा की जाँच समिति गठित कर तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देने का आदेश मोदी सरकार पर बड़ा आघात माना जा रहा है। इससे काँग्रेस के दल में आनंद ही आनंद छा गया है। विख्यात पत्रकार बी.जी.वर्गीस और गीतकार जावेद अख्तर ने इस संदर्भ में एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाख़िल की थी। इन जोड़ी का कहना था कि सभी भिड़ंतें झूठी थीं। इन सभी भिड़ंतों में मानवाधिकार की उपेक्षा हुई है। ये भिड़ंतें एक समुदाय को नष्ट करने के लिए कराई गई हैं, ऐसा इस मंडली का मानना होने पर भी यह मनगढंत और झूठ है।
मानवाधिकार की उपेक्षा
इसका मतलब क्या है? और वह किस के बारे में होती है? गोधरा कांड में जिस साबरमति एक्सप्रेस में आग लगाकर निरपराध राम सेवकों को खत्म कर दिया गया, उसमे कौनसे मानवाधिकार की रक्षा हुई थी? इसके बाद गुजरात में दंगे-फ़साद होकर बड़े पैमाने पर खून-ख़राबा हुआ था। उसमें दोनों ओर के अनगिनत लोग मारे गए थे, इस नरसंहार के लिए कौन से समुदाय के लोग ज़िम्मेदार थे, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। काँग्रेस पक्ष द्वारा बहुत कोशिश करने के बावजूद नरेन्द्र मोदी को गुजरात में हराया नहीं जा सका। मतदान पेटी द्वारा हराया न जा सकने पर सरकारी प्रणाली का गैर इस्तेमाल कर मोदी को फ़साना, यह भी एक भ्रष्टाचार है। काँग्रेसी मंडली यह भ्रस्टाचार वर्षों से करती आई हैं और उन्हें इसमें कुछ गलत नहीं लगता है। दरअसल केन्द्र में सत्ता और शासनतंत्र का गलत इस्तेमाल कर विरोधी पक्षों की सरकारो को अस्थिर करना, गिराना काँग्रेस वालो का पसंदीदा खेल रहा है। इन्होंने संविधान के 356 खंड का हमेशा गलत इस्तेमाल किया है। इस संबंध में न्यायालय की फटकार भी झेलनी पड़ी है। फिर भी उससे यह कुछ सीख ले तो फिर यह काँग्रेसी कैसे। सत्ता के बिना यह मंडली रह नहीं सकती। इसलिए विरोधी पक्षों की सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश जारी रहती है। राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद को भी वे अपना मोहरा बनाते हैं। हाल ही में कर्नाटक और अब गुजरात में यही कोशिश चल रही है। गुजरात का राजभवन काँग्रेस की गंदी और भ्रष्ट राजनीति का अड्डा बन गया है। गुजरात में लोकायुक्त को नियुक्ती में वहाँ के राज्यपाल ने जो चाले चली, उसे अब उच्च न्यायालय की मान्यता प्राप्त होने पर भी उसके पीछे काँग्रेस के दिल्लीवासी नेता ही थे। लोकायुक्त स्वतंत्र होना चाहिए लेकिन मुख्यमंत्री की सहमति के बिना राजभवन से सीधे उसका आदेश कैसे निकल सकता है? कर्नाटक और गुजरात के राजभवन में जो घटित हुआ वह बदले की राजनीति ही है। दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। यह मात्र सयोंग नहीं है। यह मामला मोदी सरकार उच्च न्यायालय में ले गई जहाँ उसे मुँह की खानी पड़ी। अब नकली मुठभेड़ मामले की दिलचस्पी से केन्द्र सरकार के असली इरादों का पता चलता है। सरकार और न्यायालय के बीच संघर्ष किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हमें उम्मीद है कि पाकिस्तान में जो हो रहा है, वह हमारे देश में न होगा। हमने देश हित को मद्देनजर रखते हुए हमारी स्पष्ट राय कही है। देशद्रोहियों को खत्म करना ही है । हो सकता है कि कल जवानों द्वारा मारे गए दहशतवादियों के ख़िलाफ विवाद पैदा हो। गुंडागर्दी करने वाले, दहशतवादी, राष्ट्रद्रोहियों को मानवाधिकार की सहुलियत क्यों मिले? ये लोग कानून से बच जाते हैं और न्यायालय भी उनका बाल बांका नहीं कर पाते। मुंब्रा की इशरतजहाँ और उसके साथीदार गुजरात में पुलिस की मुठभेड़ में मारे गए। इशरतजहाँ के बारे में हेडली ने अमरीकी अदालत में दी जानकारी महत्त्त्वपूर्ण है। इशरत जहाँ तोयबा आदि इस्लामी दहशतवादी संगठन से सम्बद्ध थी। उसी तरह पुलिस की मुठभेड़ में मारा गया सोहराबुद्दिन दहशतवादी संगठन से संबंधित था। वह मारा गया, इसमें कुछ त्रुटियाँ रह गई होंगी। लेकिन पुलिसवालों ने किसी पोप, संत या किसी मौलवी को फांसी पर नहीं चढ़ा दिया। ये लोग समाज एवं देश में हिंसा तथा दहशत पैदा करने वाले थे। परन्तु इन्हें मारने वाले कुछ पुलिस वालों को गुनहगार मानकर जेल में कैद किया गया। यही मुम्बई में भी हुआ। पुलिस वालों का समझ में ही नहीं आ रहा है कि किसकी सुने। पुलिस को कानून और व्यवस्था बनाए रखनी है। यह करते समय बन्दूक नहीं चलानी है तो पुलिस ही मारी जाएगी, शासनकर्ता भी मारे जाएँगे। न्यायालय में भी संसद की भाँति वे घुस जाएँगे। इन सभी दहशतवादियों को कहीं भी घुसने दिया जाए, जीने दिया जाए क्योकि मानवाधिकार की रक्षा करना ज़रूरी है और यही दिखाई दे रहा है।
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